कबीर के दोहे


(1)-पाहन पूजे हरि मिले ,तो मैं पूजू पहाड़ |
      ताते यह चाकी भली पीस खाए संसार ||

     
       X X X X X X X X X X X X X X 

(२) - नहाए धोए क्या भैया जो मन का मेल न जाए|
          मीन सदा जल में रहे ,धोये वास न जाए ||


       X X X X X X X X X X X X X X X

(3) - कांकर पाथर जोरि के मस्जिद लई चुनाय ||
        वा  चढ़ि मुल्ला बांग दे क्या बहरा भया खुदाय ||


          X X X X X X X X X X X X XX X

(4) झूठा जब -तप झूठा ज्ञान |
      राम नाम बिन झूठा ध्यान ||


         X X X X X X X X X X X X X X X

(5) - अरे इन दोउन राह न पाई|
      हिंदू अपनी करै बडाई, गागर छूवन न देई ||
     मुसलमान की पीर औलिया, मुर्गी मुर्गा खाई|


 X X X X X X X X X X X X X X X X 

(6) - दुर्बल को न सताइये, जाकी मोटी हाय |
       मुई खाल की सांस  सो, सार भसम हुवै जाय||

   X X X X X X X X X X XX X X X X X X 

(7) - वैरागी बीरकट भला, गिरही चित्त उदार |
         दुहुं चूंका रीता पडै, ताकूं बार न  पार  ||

   X X X X X X X X X X X  XX X X X X

(8) - पोथी पढ़ -पढ़ जग मुआ ,पंडित भया न कोय|
        ढाई अक्षर प्रेम का ,पढ़े सो पंडित होय||

   X X X X X X X X X X X X X X X X X X

(9) - रोजा किया निजाम गुजारी ,बांग दे लोग बुलाया |
      हृदय कपट मिले क्यों साई क्या हज कावे जावा||

      X X X X X X X X X X X X X X X X X X


(10) - साईं सूं है सब होत है ,बंदे ते कछु नाहि|
          राई ते पर्वत करै पर्वत राई मांही ||
Arp............ 

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